4बलि का अहिंसक स्वरुप

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मुंडेश्‍वरी मंदिर की बलि प्रथा का अहिंसक स्‍वरूप इसकी खासियत है। इस शक्तिपीठ में परंपरागत तरीके से बकरे की बलि नहीं होती है। केवल बकरे को मुंडेश्वरी देवी के सामने लाया जाता है और उस पर पुजारी द्वारा ‘अक्षत’ का दाना जैसे ही छिड़का जाता है वह अपने आप अचेत हो जाता है। बस यही बलि की पूरी प्रक्रिया है। इसके बाद बकरे को छोड़ दिया जाता है और वह चेतना में आ जाता है। यहां बकरे को काटा नहीं जाता है। बलि की यह क्रिया माता के प्रति आस्था को बढ़ाती है। इसके साथ-साथ यहां स्थापित चतुर्मुखी शिवलिंग के रंग को सुबह, दोपहर और शाम में परिवर्तित होते हुए आज भी देखा जा सकता है।

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