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पत्रकार से किसान बनने तक का सफर : गिरिन्द्र नाथ झा

गिरिन्द्र नाथ झा का जन्म पूर्णिया के चनका गांव में हुआ था। बचपन से ही उन्हें अपने अपने गांव से बेहद ही लगाव रहा लेकिन, गिरिन्द्र नाथ झा के किसान पिता ने हमेशा उन्हें गांव से दूर रखा। समाज मे एक किसान को असफलता का प्रतिबिंब माना जाता है और हर पिता की तरह उनकी भी इच्छा रहीं की वे अपने जीवन में अपने बेटे को सफल होते देखें। इसीलिए गिरिन्द्र नाथ के पिता ने गिरिन्द्र नाथ को बचपन से ही विविध शहरों में पढ़ने के लिए भेजा। गिरिन्द्र नाथ ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के सत्यवती कॉलेज से अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन किया और फिर वाईएमसीए इंस्टीट्यूट से प्रिंट मीडिया में पोस्ट ग्रेजुएशन किया।

पढ़ाई के बीच छुटियों में गिरिन्द्र नाथ जब भी चनका गांव आते तो उनका मन वहीं रुक जाने का करता, लेकिन बाबूजी की आगे उनकी एक न चलती और पुनः फिर वे शहर का रुख कर लेते। हालांकि गिरिन्द्र नाथ जब भी गांव जाते तब वहां कुछ कदंब के पेड़ जरूर लगा आते। हर छुट्टी पर गांव आकर पेड़ लगाते का सिलसिला यूँही चलता रहा। पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद गिरिन्द्र नाथ ने आईएनए न्यूज़ सर्विसेज में काम किया और वहां तीन साल तक दिल्ली में काम करने के बाद गिरिन्द्र नाथ ने दिल्ली यूनिवर्सिटी से कंप्यूटर साइंस में स्नातक की पढ़ाई कर चुकी प्रिया से शादी कर ली। इसके बाद ये जोड़ा कानपुर में जा बस गया, जहा गिरिन्द्र नाथ को दैनिक जागरण अख़बार में नौकरी मिल गई।

2012 में पत्रकारिता के करियर के शिखर पर पहुंच चुके गिरिन्द्र नाथ को अचानक अपने बाबू जी को ब्रेन हेमरेज होने की खबर मिली। गिरिन्द्र नाथ फौरन अपने परिवार समेत चनका की ओर रवाना हो गए। पुश्तैनी 17 बीघा ज़मीन और बाबूजी की सेवा के लिए उन्होंने गांव में ही बस जाने का निर्णय लिया। इस ज़िद्द के आगे बाबूजी की भी एक न चली। पत्नी प्रिया ने भी गिरिन्द्र नाथ के इस फैसले का पूरा सम्मान किया। ताजुब्ब की बात तो यह थी कि जहां युवा पीढ़ी गांव से पलायन करने का मौका ढूंढती है, तो वहीं ये युवा जोड़ा शहर की चकाचौंध को छोड़ गांव में बसने को लेकर बेहद खुश था।

उनकी लिखी एक पुस्तक इश्क़ में माटी सोना काफी प्रचलित हुई

गिरिन्द्र नाथ ने अपने प्यार में आई इस बदलाव की पूरी कहानी पुस्तक इश्क़ में माटी सोना में लिखी। गिरिन्द्र नाथ के इस पुस्तक का विमोचन प्रसिद्ध पत्रकार रवीश कुमार ने किया। इस पुस्तक को देश विदेश में काफी लोकप्रियता मिली। लेकिन अब भी कुछ शेष था, अब गिरिन्द्र नाथ के दिमाग मे अब गांव में एक ऐसा घर बनाने का सपना पनपने लगा जहाँ शहर के लोग भी आकर रहने को उत्सुक होवे। इसके लिए सबसे पहले उन्होंने गांव से शहरों की ओर हो रहे पलायन को रोकने की ठानी। गिरिन्द्र नाथ ने पता लगाना शुरू किया कि आखिर क्यों लोग शहर की ओर रुक करते है। मालूम हुआ कि गांव के परिवारों को ज़मीन खो देने की वजह से गांव से पलायन करना पड़ रहा था। गिरिन्द्र नाथ ने उन परिवारों के सामने अपनी ज़मीन पर खेती करने का प्रस्ताव रखा और इस प्रकार से गांव में साझेदारी पर खेती होने लगी। गिरिन्द्र नाथ ने इस समस्या की तह तक जाने की कोशिश की और मालूम हुआ कि खेती में नुकसान होने का सबसे बड़ा कारण था नशा।

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गांव के कई पुरूष को पीने की लत थी, जिसके चलते जितना कमाई होती वे सब इस लत पर खर्च कर देते। गिरिन्द्र नाथ ने सबसे पहले नशे करने वाले पुरुषों के बच्चों से दोस्ती की और नशे से होने वाले दुष्परिणामों पर आधारित कई डॉक्यूमेंट्री फिल्में दिखाकर समझाया कि उन्हें अपने पिता को नशा लेने से रोकना चाहिए। बच्चों के साथ उनकी माताएं भी गिरिन्द्र नाथ की इस मुहिम पर चल पड़ी। अबला समझी जानेवाली नारियों ने अपने घर मे नशामुक्ति के लिए जंग छेड़ दी। धीरे धीरे गांव पूरी तरह नशामुक्त हो गया और पलायन का समस्या भी थमने लगा। भले ही गिरिन्द्र नाथ ने गांव के लोग को शहर जाने से रोक लिया था, लेकिन अब भी शेष था शहर के लोगों को गांव की मिट्टी और इस वातावरण से भेंट करवाना।इसी सिलसिले में गिरिन्द्र नाथ ने पटना यूनीसेफ द्वारा आयोजित एक समारोह में यूनीसेफ का अगला फ़िल्म फेस्टिवल किसी बड़े शहर के बजाय चनका में होए इसका प्रस्ताव रखा। गिरिन्द्र नाथ का प्रयास सफल हुआ और 2015 का यूनीसेफ का बाल चित्र महोत्सव चनका में आयोजित हुआ और चनका को एक अलग पहचान मिली।

गांव में रह कर भी वे इंटरनेट के माध्यम से सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते है

वे भले ही गांव में बस गए थे लेकिन इंटरनेट के माध्यम से वे शहर से भी जुड़े रहें। वे हर साल यहां सोशल मीडिया मीट करते और अपने ब्लॉग ‘अनुभव’ के जरिये लोगो को चनका की बातें साझा करतें। ऐबीपी न्यूज़ और दिल्ली सरकार की ओर से ‘अनुभव’ को सर्वश्रेष्ठ हिंदी ब्लॉग से सम्मानित किया गया। इसके साथ ही गिरिन्द्र नाथ राजनीतिक एवम सामाजिक विषयों पर एनडीटीवी, बीबीसी और जागरण जैसी कई अखबार और न्यूज़ वेबसाइट के लिए भी बराबर लिखते रहे है।गिरिन्द्र नाथ के लेखन के ज़रिए ही दुनिया चनका को जानने व समझने लगी। लेकिन अब भी कुछ शेष था, गिरिन्द्र नाथ चाहते थे कि शहर के लोग, गांव को करीब से जाने और महसूस करें और इसी मकसद को पूरा करने हेतु गिरिन्द्र नाथ ने चनका रेसिडेंसी कि स्थापना की। गिरिन्द्र नाथ ने पेड़ो, बाग बगीचा के बीच अपनी पूंजी लगाकर एक स्वर्ग जैसा घर बनाया जहां शहर से मेहमान आकर रुकते, गांव का खाना खाते, संगीत सुनते और यहां की मिट्टी की खुशबू का आनंद लेते। गिरिन्द्र नाथ ने चनका रेसिडेंसी की स्थापना कर गांव और शहर की वो दूरी को मिटा दी जो केवल इंटरनेट के माध्यम से ही जुड़ पाते थे।

सबसे पहले चनका रेसिडेंसी के मेहमान थे इयान वुल्फर्ड जो मूल रूप से अमेरिका के रहने वाले हैं और ऑस्ट्रेलिया के लॉ ट्रोब यूनिवर्सिटी में हिंदी के प्रोफ़ेसर हैं। गिरिन्द्र नाथ इस प्रोजेक्ट को और आगे बढ़ाना चाहते है। वे चनका रेसिडेंसी के पास म्यूजियम बनाना चाहते हैं जहां उन सामानों को इकट्ठा करना चाहते हैं जो पहले किसानी काम में प्रयोग हुआ करता था, जैसे लकड़ी का हल, बैलगाड़ी आदि। इन सामानों को डिस्प्ले करने के लिए हॉल बनाने की योजना है और साथ ही एक पुस्तकालय भी जहां निम्न प्रकार की किसानों से, गांव से जुड़ी किताबें हो।

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