अनियंत्रित और अनियोजित शहरीकरण से अर्बन फल्ड और फ्लैस फल्ड की खबरें आये दिन चर्चा में रहती हैं।

आज ‘स्मार्ट सिटी’, ‘गारबेज फ्री सिटी’, स्वच्छ भारत मिशन(अर्बन) जैसी तमाम स्कीमों के बीच सरकार के ‘एस्पिरेशनल डिस्ट्रिक्ट प्रोग्राम’ में टाॅप करने वाला बिहार का नवादा जिला शहरी इलाकों में जल जमाव से त्रस्त है।

जनवरी में नीति आयोग द्वारा रैंक किए गए आकांक्षी जिलों की सूची में सबसे ऊपर बिहार का नवादा जिला है। नीति आयोग की डेल्टा रैंकिंग 112 आकांक्षी जिलों में विकास के छह क्षेत्रों में हुई प्रगति पर आधारित है।

ये छह क्षेत्र हैं- स्वास्थ्य और पोषण, शिक्षा, कृषि और जल संसाधन, वित्तीय समावेश, कौशल विकास और मूल ढांचागत सुविधाएं।

परंतु इन सरकारी आंकड़ों से इतर जमीनी हकीकत कुछ और है। यहां दशकों से शहरवासी एक ही समस्या की गुहार लगा रहे हैं, जिसका अबतक कोई स्थायी समाधान नहीं हो पाया है।इस दौरान कई मर्तबा शासन-प्रशासन बदला, लेकिन नवादा शहर की सूरत नहीं बदली।

बरसात के मौसम में कई मोहल्ले टापू में तब्दील हो जाते हैं। जलजमाव के कारण जगह-जगह टूटती सड़कों, घरों, दुकानों और गोदामों में नाली का पानी घुसने की वजह से शहरी जनजीवन अस्त-व्यस्त रहता है। फाइलों में बड़ी-बड़ी योजनाएं हर साल बरसात के मौसम में बनती हैं और धरातल पर आते आते बरसाती मेढ़कों की तरह गायब हो जाती हैं।

हर वर्ष आम जनता और नगर परिषद के लाखों रुपये इस कारण बरबाद होते हैं। परंतु समस्या जस की तस बनी रहती है।

● अनियोजित शहरीकरण है समस्या

बढ़ती आबादी और गाँवों से शहरी क्षेत्रों में माइग्रेशन की वजह से सीमित क्षेत्रों में प्राकृतिक संसाधनों पर अधिक बोझ पड़ रहा है। ऐसे में जल निकासी के लिए अनिवार्य और सुचारू प्लानिंग होना बहुत जरूरी है। शहर के जिस हिस्से से 20-30 फीट चौड़ी पईन बहती थी।अब उस जगह 03-04 फीट चौड़े नाले का निर्माण करके बहाव को सीमित कर दिया गया।

बढ़ती आबादी के साथ जहां ड्रेनेज और सीवरेज सिस्टम का विकास होना चाहिए था, वहां बिना किसी योजना के नाले-नालियों का निर्माण जारी है। ऐसे में शहर का डूबना लाजिमी है।

● विफल रही हैं शहरी विकास की नीतियां

नीति आयोग की रिपोर्ट में जिन पैमानों
‘स्वास्थ्य, जल संसाधन,और मूल ढांचागत सुविधाएं’ के आधार पर नवादा ने प्रथम स्थान प्राप्त किया था, शहर के कई मोहल्ले उन्ही पैमानों पर पिछड़ते हुए सालों भर जल जमाव से जूझते रहते हैं। नदियों के बढ़ते जलस्तर और नालियों की कम चौड़ाई के कारण जमा हुआ गंदा पानी अनेकों बीमारियों का कारक है। शहर के डोभरा पर, अम्बेडकर नगर, इस्लाम नगर, शरीफ कॉलोनी, पटेल नगर, शिव नगर, मंगर बिगहा, राम नगर, वीआईपी कॉलोनी जैसे मोहल्लों के कई इलाकों में सालों भर पानी जमा होता है।

एक तरफ कोरोना महामारी के बीच साफ सफाई को प्रमुख मुद्दा बनाया जा रहा है, सरकारी खजाने खाली किये जा रहे हैं। वहीं मोहल्ले में जमे गंदे पानी की समस्या और कोविड की आशंका से शहरवासी परेशान हैं।

● फोरलेन का चौड़ीकरण बना जल जमाव का कारक

हाल ही में सरकार द्वारा रजौली -नवादा -बख्तियारपुर नेशनल हाईवे के फोरलेन के चौड़ीकरण का काम शुरू किया गया है। इस योजना की खूबियों को बढ़ चढ़ कर प्रचारित किया गया। परंतु विकास के सुनहरे सपनों के बीच नगरवासियों की समस्याओं का स्याह सच भी है, जहां गंदे पानी की बदबू और बीमारियों का भय है।

सरकारी निरीक्षण के आकड़ों के अनुसार नवादा से बख्तियारपुर के बीच 3,597 पेड़ों को काटा जाएगा। जबकि, 4,604 पेड़ों को ट्रांस लोकेट किया जाएगा।

चौड़ीकरण के फलस्वरूप इस फोरलेन से सटे इलाकों में पानी निकासी की समस्या हो रही है। कंस्ट्रक्शन के कारण मोहल्ले की नालियों का निकाह द्वार बंद हो चुका है। नवादा के वार्ड संख्या 27 मोहल्ला इस्लाम नगर में लोग गंदे पानी के बीच आवागमन के लिए मजबूर हैं। यहां थोड़ी ही बारिश से सड़क तालाब में तब्दील हो जाती है। महीनों से जल जमाव की स्थिति बनी हुई है। नाली के पानी की निकासी बंद होने से गंदा पानी मोहल्ले में जमा हो रहा है। लोगों ने बताया कि तकरीबन दो महीने से यह समस्या है और गंदे पानी का स्तर दिन ब दिन बढ़ता जा रहा है। परेशान मोहल्ले वासियों ने स्थानीय प्रशासन से कई बार गुहार लगाई परंतु कोई समाधान नहीं मिला। डी एम आॅफिस से लेकर नगर प्रशासन तक से बस झूठे आश्वासन मिले, कोई ठोस कदम नहीं।

सुस्त पड़े स्थानीय प्रशासन से लोग निराश हो चुके हैं। अब देखना ये है कि विकास की चमकती बयारों के बीच आखिर कब तक नगरवासी गंदे पानी की बदबू के बीच जीने को मजबूर रहते हैं।

Facebook Comments