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करवाचौथ : चंद्र पूजन व व्रत से महिलाएं करती हैं पति की मंगल कामना

भारतीय धर्मशास्त्रों में सुहागिनों द्वारा मनाये जाने वाले त्योहार में सबसे खास है करवाचौथ। यह पर्व केवल महिलाओं के त्याग, समर्पण या प्रेम की अभिव्यक्ति ही नहीं करता है, अपितु पुरुषों के प्रति उनके द्वारा दिए जाने वाले सम्मान का भी द्योतक है।

करवाचौथ संपूर्ण भारत में खासतौर पर उत्तरी भारत में हिन्दू महिलाओं द्वारा मनाया जाने वाला एक मुख्य त्यौहार है। इस दिन महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए सूर्योदय से रात चांद दिखने तक निर्जल व्रत रखती हैं। इस प्राचीन हिन्दू त्योहार के बारे में अधिक जानने के लिए आगे पढ़ें। यह त्योहार राजस्थान, उत्तर प्रदेश के कुछ भागों, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा और पंजाब में मुख्य रूप से मनाया जाता है।

यदि आप यह व्रत रखने वाली हैं, तो आप मेकअप, कॉस्मेटिक्स (श्रृंगार), आभूषण, गहने, करवा और मट्ठी, इत्यादि चीजों की खरीदारी कुछ दिन पहले से ही शुरू कर दें। अब तो बाजार भी पहले से ही करवाचौथ से संबंधित चीजों से सजे-धजे रहते हैं, जिससे आपको उपयोगी विकल्पों को चुनने में कोई परेशानी नहीं होती।

इस दिन आपको सूर्योदय से पहले यह व्रत रखने वाली और महिलाओं के साथ उठकर कुछ खाना तथा पीना चाहिए। यदि आप उत्तर प्रदेश से संबंधित क्षेत्र से हैं तो आप सूर्योदय से पहले शक्कर और दूध के साथ सूत फेनी (चने और दूध से बना एक पारम्परिक व्यंजन) लेना पसंद करेंगी। इस मिश्रण के सेवन से अगले दिन बिना पानी पीए रहने में मदद मिलती है। पंजाब में सूर्योदय से पहले लिए गए अन्न् में सरगी का एक महत्वपुर्ण स्थान है।

परंपरा के अनुसार सरगी सास द्वारा अपनी बहु को करवाचौथ पर दिया जाने वाला बहुमूल्य उपहार है जिसमें काजू बादाम, मीठी मट्ठी और सुहाग की निशानियां होती हैं। यदि आप अपने सास के साथ ही रहती हैं तो सूर्योदय के पहले खाया जाने वाला पदार्थ आपकी सास द्वारा ही बनाया जाता है।

ध्यान रहे कि व्रत सूर्योदय से ही शुरू हो जाता है। यह एक कठिन व्रत है और इसमें आप दिन भर कुछ भी खा या पी नहीं सकतीं। इस लिहाज से इसे मुश्किल पर्व भी माना जाता है।

सामूहिक गतिविधियों में भाग लेना

सुबह के समय दूसरी महिलाओं के साथ समय बिताएं और एक-दूसरे के हाथ और पैरों में मेहंदी लगाइए। सूर्यास्त से पहले, आप सभी पूजा संबंधित रस्मों को निभाने के लिए एक जगह एकत्रित होंगे (जो किसी का घर हो सकता है)।

आप सभी एक-दूसरे से बयाना की अदला-बदली करके एक साथ मिलकर अपने पति के कल्याण, सुरक्षा और लंबी आयु के लिए प्रार्थना करेंगी। इस पूजा में महिलाएं करवा माता की पूजा पूरे विधि-विधान के साथ करती हैं। बयाना एक उपहार से भरी टोकरी की तरह होता है जिसमें श्रृंगार का सामान, बादाम, सात पुरियां, गुलगुले, मिठाइयां आदि होते हैं।

अपने पति या मंगेतर को भी इस विधि में शामिल करें

यद्यपि यह त्योहार खास तौर से महिलाओं का है, फिर भी पति इसमें सक्रिय रूप से भाग लेते हैं। वे खुद के लिए अपनी पत्नी द्वारा किए गए इस कठोर व्रत और प्रार्थना के बदले में उन्हें उपहार देते हैं। यह त्योहार दो सहेलियों के आपसी प्रेम के साथ-साथ पति और पत्नी के बीच अटूट रिश्ते की भी याद दिलाता है।

करवाचौथ की व्रत-विधि और पौराणिक कथा

अन्य पूजन की तरह करवाचौथ का व्रत और पूजन भी पूरे विधि-विधान से करना चाहिए।

पूजन सामग्री:

मिट्टी, तांबा अथवा पीतल के दो करवे, दूध, जल, धुप, सुपारी, मौलि, अक्षत, दीप, कपूर, सिंदूर, काजल, पुष्प एवं पुष्पमाला, जल के लिए तीन पात्र, नैवैद्य के लिए पूर्ण फल, मेवा या मिठाई, इत्यादि।

इस व्रत में पीसी हुई चावल के घोल से दीवाल पर सबसे ऊपर चन्द्रमा बनते हैं उसके नीचे शिव, गणपति और कार्तिकेय का चित्र बनाया जाता है। फिर पीली मिट्टी से माता गौरी बनाई जाती हैं जिनकी गोद में गणपति को बैठाया जाता है। गौरी को चौकी पर बिठाकर सभी सुहाग चिह्नों से उन्हें सजाया जाता है और उनकी पूजा की जाती है। एक पुष्प को नन्दीश्वर स्वरूप मानकर स्थान दिया जाता है।

करवा में रक्षासूत्र बांधें तथा हल्दी और आटे के सम्मिश्रण से एक स्वस्तिक बनाएं। एक करवे में जल भरें तथा दूसरे करवे में दूध भरें और इसमें तांबे या चांदी का सिक्का डालें। आचमन के लिए छोटे पात्र में जल भर कर रखें तथा साथ में एक चम्मच भी रखें।

पूजा के लिए मंत्र:

ॐ शिवायै नम: से पार्वती का, ॐ नम: शिवाय से शिव का, ॐ षण्मुखाय नम: से स्वामी कार्तिकेय का, ॐ गणेशाय नम: से गणेश का तथा ॐ सोमाय नम: से चंद्रमा का पूजन करें। सब तैयारी हो जाने के बाद करवाचौथ की कथा सुनें और फिर चन्द्रमा निकलते ही श्री चन्द्रदेव को अर्ध्य दीजिए।

करवाचौथ के दिन व्रत कथा पढ़ना अनिवार्य माना गया है: करवाचौथ की कई कथाएं हैं, लेकिन सबका मूल एक ही है। करवाचौथ की कुछ प्रचलित कथाएं आगे दी गईं हैं।

वीरावती की कथा:

इस कथा का सार यह है कि शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवाचौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, परंतु उससे भूख नहीं सही गई और वह व्याकुल हो उठी।

उसके भाइयों से अपनी बहन की व्याकुलता देखी नहीं गई और उन्होंने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया। परिणाम यह हुआ कि उसका पति तत्काल अदृश्य हो गया। अधीर वीरवती ने बारह महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवाचौथ के दिन उसकी तपस्या से उसका पति पुन: प्राप्त हो गया।

करवा की कथा:

एक समय की बात है कि एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे के गांव में रहती थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया। स्नान करते समय वहां एक मगर ने उसका पैर पकड़ लिया। वह मनुष्य करवा-करवा कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा। उसकी आवाज सुनकर उसकी पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को कच्चे धागे से बांध दिया। मगर को बांधकर यमराज के यहां पहुंची और यमराज से कहने लगी- हे भगवन! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है।

उस मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ। यमराज बोले, अभी मगर की आयु शेष है, अत: मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूंगी। सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।

द्रौपदी की कथा:

इस कथा के अनुसार एक समय की बात है, जब नीलगिरी पर्वत पर पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने गए। तब किसी कारणवश उन्हें वहीं रुकना पड़ा। उन्हीं दिनों पांडवों पर गहरा संकट आ पड़ा। तब चिंतित व शोकाकुल द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया तथा कृष्ण के दर्शन होने पर पांडवों के कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा।

तब कृष्ण बोले- हे द्रौपदी! मैं तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण जानता हूं। उसके लिए तुम्हें एक उपाय करना होगा। जल्दी ही कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम पूरे मन से करवाचौथ का व्रत रखना। भगवान शिव, गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे तथा सबकुछ ठीक हो जाएगा। कृष्ण की आज्ञा का पालन कर द्रौपदी ने वैसा ही करवाचौथ का व्रत किया। तब उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सारी चिंताएं दूर हो गईं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि की समीक्षा

यह जानें कि एक नवविवाहिता अपने गांव या शहर को छोड़कर अपने पति के साथ रहने लगती है: वह अपने घर को पूरी तरह भूलाकर अपने ससुराल को ही अपना नया घर बना लेती है। यह प्रथा तब शुरू हुई, जब नव-विवाहिता इस नए वातावरण में एक नयी सहेली बना पाई।

यह रिश्ता एक महत्वपूर्ण बंधन में परिवर्तित हो गया और इस जाने माने त्योहार के रूप में मनाया जाने लगा। यह नई सहेली नवविवाहिता की एक अच्छी सहेली या बहन जैसी बन गई। ये दोनों महिलाएं एक-दूसरे को साहस देती होंगी और अपने पतियों के कल्याण के लिए मिलकर प्रार्थना करती होंगी। करवाचौथ, नव-विवाहिता और उसकी इस अच्छी सहेली या अच्छी बहन जैसी दोस्त के बीच गहन संबंध को प्रकट करता है। यह अच्छी सहेली या अच्छी बहन जैसी दोस्त परिवार के सदस्य की तरह ही होती थी।

ध्यान दें कि यह त्योहार भारत के उत्तरी और उत्तरी-पश्चिम क्षेत्र में मनाया जाता है: यद्यपि इस त्योहार की उत्पत्ति को लेकर अनेकों अनुमान हैं फिर भी यह कोई नहीं जानता कि यह त्योहार भारत के उत्तरी क्षेत्र और सिर्फ अक्टूबर के महीने में क्यों मनाया जाता है। यहां पर इससे संबंधित व्यापक रूप से स्वीकार्य धारणा है। अक्टूबर में वर्षा-ऋतु बाद अक्सर जमीन सूखी रहती है।

मिलिट्री कैंप और लंबी दूरी की यात्रा भी अक्सर अक्टूबर या नवंबर के महीने में शुरू होते हैं। महिलाओं ने अपने पति (या मंगेतर) की लंबी आयु और सुरक्षा के लिए व्रत तथा प्रार्थना की शुरुआत की होगी ताकि वे यात्रा और दायित्व निभाने में सफल हों।

ध्यान रहे कि यह त्योहार और गेहूं की बुवाई एक ही समय होती है:

गेहूं के भंडारण में इस्तेमाल आने वाले पात्र काफी बड़े और मिट्टी के बने होते थे और उन्हें करवा कहा जाता था। चौथ शब्द का मतलब चौथा होता है। ऐसा कुछ अनुमान लगया जाता है कि यह त्योहार अच्छी फसल हेतु आरंभ हुआ होगा।

ध्यान दें कि करवाचौथ अक्टूबर महीने में चन्द्रमा के क्षय वाले पक्ष में चौथी तिथि को पड़ता है: इस दिन को हिन्दू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक माह के कृष्णपक्ष की चतुर्थी कहते हैं। इसकी कोई विशिष्ट तारीख नहीं होती पर यह अक्सर अक्टूबर महीने में पड़ता है।

सलाह

व्रत तोड़ने के पश्चात बहुत अधिक न खाएं। अधिक से अधिक पानी पीना और स्वस्थ आहार लेना महत्वपूर्ण है। यदि आपको स्वास्थ्य संबंधी कोई चिकित्सीय समस्या हो तो उस वर्ष के लिए यह व्रत आप छोड़ सकती हैं। व्रत के दौरान कसरत या व्यायाम न करें।

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