Monday, May 6, 2024
a memoir on human sensibilities

हम क्या थे, क्या होते जा रहे हैं…

हम क्या थे, क्या होते जा रहे हैं... ख़त्म होती मानवीय संवेदना !!! बात कुछ दिन पहले की है। हम गाँधी मैदान से डाक बंगला...

मेरा वो दो रंगा साथी ।।

एक हक़ के साथ गढ़ रखा था मैंने, मेरे नाम को पहले ही पन्ने पर।। खफ़ा है आज वो मुझसे , किसी दोस्त की तरह, और खफ़ा हो भी...
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मधुशाला : बिहारी संस्करण

(हरिवंशराय 'बच्चन' की स्मृति को विनम्र अभिवादन कर) """""""""""""""""""""""""""""""""""""" पटना छपरा दरभंगा तक सूख गया रस का प्याला हाजीपुर के पुल पर केले अब बेच रही है मधुबाला महफिल अब...
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हाँ ये उन दिनों की बात है!! (Remembering Childhood )

हाँ ये उन दिनों की बात है!! (Remembering Childhood ) हाँ ये उन दिनों की बात है, जब पतंगों के साथ खुद भी लगते थे उड़ने हाँ...
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बस एक तमन्ना है मेरी

बस एक तमन्ना है मेरी बस एक तमन्ना है मेरी , क्या कर दोगे वो तुम पूरी, मैं चाहूं गर सोना, हो अमन का बिछौना , चैन की...