3भगवान विष्णु नहीं चाहते थे

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भगवान विष्णु नहीं चाहते थे कि यह ज्योर्तिलिंग लंका पहुंचे अत: उन्होंने गंगा से रावण के पेट में समाने का अनुरोध किया। रावण के पेट में जैसे ही गंगा पहुंची रावण के अंदर मूत्र करने की इच्छा प्रबल हो उठी। वह सोचने लगा कि शिवलिंग को किसी को सौंपकर लघुशंका कर ले तभी विष्णु भगवान एक ग्वाले के भेष में वहां प्रकट हुए। रावण ने उस ग्वाले बालक को देखकर उसे शिवलिंग सौंप दिया और ज़मीन पर न रखने की हिदायत दी।

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रावण जब मूत्र करने लगा तब गंगा के प्रभाव से उसकी मूत्र की इच्छा समाप्त नहीं हो रही थी ऐसे में रावण को काफी समय लग गया और वह बालक शिव लिंग को भूमि पर रखकर विलुप्त हो गया। रावण जब लौटकर आया तब लाख प्रयास करने के बावजूद शिवलिंग वहां से टस से मस नहीं हुआ अंत में रावण को खाली हाथ लंका लौटना जाना पड़ा। बाद में सभी देवी-देवताओं ने आकर इस ज्योर्तिलिंग की पूजा की और विधिवत रूप से स्थापित किया। काफी वर्षों के बाद वैजनाथ नामक एक व्यक्ति को पशु चराते हुए इस शिवलिंग के दर्शन हुए। इसी के नाम से यह ज्योर्तिलिंग वैद्यनाथ धाम के नाम से प्रसिद्ध हुआ।