आठ साल के लंबे अंतराल के बाद फिल्म रोबोट का सीक्वल 2.0 दस्तक दे चुका है. फिल्म के कॉन्सेप्ट की बात करें तो यह इस बात पर फोकस करती है कि किस तरह से मोबाइल फोन ने न सिर्फ इंसान की जिंदगी को कैद कर लिया है बल्कि इससे दूसरे प्राणियों विशेषकर पक्षियों के अस्तित्व पर सवालिया निशान लग गया है. यह पृथ्वी सिर्फ इंसानों की नहीं है इसलिए उसे दूसरे प्राणियों के बारे में भी सोचना होगा क्योंकि उनके विनाश में कहीं न कहीं मनुष्य जाति का भी विनाश है.

काॅन्सेप्ट के लिहाज से यह साइंस फिक्शन फिल्म शानदार है, लेकिन स्क्रीनप्ले उस लिहाज से प्रभावी नहीं बन पाया है. फिल्म की कहानी शुरू होती है एक बूढ़े आदमी के सेलफोन टावर से लटकर आत्महत्या कर लेने से. उसके बाद एक-एक करके पूरे शहर के मोबाइल फोन गायब होने लगते हैं.

आठ साल के लंबे अंतराल के बाद फिल्म रोबोट का सीक्वल 2.0 दस्तक दे चुका है. फिल्म के कॉन्सेप्ट की बात करें तो यह इस बात पर फोकस करती है कि किस तरह से मोबाइल फोन ने न सिर्फ इंसान की जिंदगी को कैद कर लिया है बल्कि इससे दूसरे प्राणियों विशेषकर पक्षियों के अस्तित्व पर सवालिया निशान लग गया है. यह पृथ्वी सिर्फ इंसानों की नहीं है इसलिए उसे दूसरे प्राणियों के बारे में भी सोचना होगा क्योंकि उनके विनाश में कहीं न कहीं मनुष्य जाति का भी विनाश है.

काॅन्सेप्ट के लिहाज से यह साइंस फिक्शन फिल्म शानदार है, लेकिन स्क्रीनप्ले उस लिहाज से प्रभावी नहीं बन पाया है. फिल्म की कहानी शुरू होती है एक बूढ़े आदमी के सेलफोन टावर से लटकर आत्महत्या कर लेने से. उसके बाद एक-एक करके पूरे शहर के मोबाइल फोन गायब होने लगते हैं.

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