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कार्तिक शुक्ल एकादशी शुक्रवार को देवोत्थान एकादशी मनेगी। भगवान श्रीहरि चार माह के शयन यानी योग निद्रा से जागेंगे। इसके साथ ही चातुर्मास व्रत का भी समापन होगा। वहीं हिन्दू धर्मावलंबियों के शुभ मांगलिक कार्यों का भी शुभारंभ हो जाएगा। विवाह के शुभ मुहूर्त 19 नवंबर से शुरू होंगे। मान्यता है कि आषाढ़ शुक्ल हरिशयन एकादशी पर भगवान चार महीने के लिए शयन करने चले जाते और देवोत्थान एकादशी पर जागते हैं।

विधि विधान से श्रीहरि को जगाया जाएगा
प्रबोधनी एकादशी पर शुक्रवार को भगवान को पूरे विधि-विधान से भक्त जगाएंगे। दिनभर श्रद्धालु उपवास में रहेंगे। भगवान को जगाने के लिए  आंगन में ईखों का घर बनाया जाएगा। चार कोने पर ईख और बीच में एक लकड़ी का पीढ़ा रखा जाएगा। आंगन में भगवान के स्वागत के लिए अरिपन(अल्पना) की जाएगी। पीढ़े पर भी अरिपन की जाएगी। शाम में इस पर शालिग्राम भगवान को रखकर उनकी पूजा की जाएगी। वेद मंत्रोच्चार के साथ भगवान को भक्त जगाएंगे। कम से कम पांच श्रद्धालु मिलकर भगवान को जगाएंगे।

शालिग्राम के संग तुलसी का विवाह 
प्रबोधनी एकादशी ही वृंदा (तुलसी) के विवाह का दिन है।  तुलसी का भगवान विष्णु के साथ विवाह करके लग्न की शुरुआत होती है। आचार्य प्रियेन्दु प्रियदर्शी के अनुसार वृंदा के श्राप से भगवान विष्णु काले पड़ गए थे। उन्हें शालिग्राम के रूप में तुलसी की चरणों में रखा जाएगा। ज्योतिषी ई.प्रशांत कुमार के मुताबिक  तुलसी की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है। इसलिए हर घर में तुलसी विवाह को अधिक महत्व दिया जाता है। तुलसी विवाह शालिग्राम में पूरे रीति रिवाजों सहित किया जाता है। तुलसी विवाह के दौरान कन्या दान भी किया जाता है, क्योंकि कन्या दान को सबसे बड़ा दान माना गया है।

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