बची-खुची कसर दिल की बीमारी ने पूरी कर दी। शादी के बाद कई सालों तक ऐसा कौन सा दिन न होगा जब खुद को उसने इस बात के लिए ना कोसा  कि उसने आकाश के साथ जाने की हिम्मत क्यों न दिखाई। अगर उसने उस दिन हिम्मत दिखाई होती तो आज उसकी जिंदगी कुछ और ही होती।

शादी के 10 साल बाद केशव दिल के दौरे से गुजर गए उसके बाद उसने पूरी धर्म परायणता के साथ विधवा जीवन निभाया और निधि के लालन-पालन में अपने को लगा दिया। अपने घर में दो-तीन किराएदार रख लिया और केशव जी की सरकारी नौकरी में मिले पैसों के कारण उसे उतनी आर्थिक तंगी नहीं रही पर एक बार जिंदगी की रंगीनियों से 18 साल की उम्र में जो दूर हुई फिर उनसे उसका परिचय ना हुआ।  सोचते सोचते आरती की आंखों से आंसू के दो बूंद गिर पड़े।

निधि की बीएड की पढ़ाई के कारण कॉलेज के पास घर लेकर रहने के लिए पहली बार उसने पुश्तैनी माकन से बाहर कदम रखा था। इस नए माहौल का असर था या निधि की बातों का। उसे लगा उसे स्वाति की मदद करनी चाहिए ताकि जो उसके साथ हुआ उसकी पुनरावृत्ति ना हो। एक और आरती घुट-घुटकर जीवन जीने के लिए मजबूर ना हो। एक बेटी होना क्या इतना बड़ा जुर्म है कि उसकी सजा जीवनभर मिले। अगर उसने आज स्वाति की मदद नहीं की एक और लड़की जाति की बेदी पर बलि चढ़ जाएगी। एक निश्चय के साथ वह सो गई। सुबह जब आरती उठी उसे बहुत हल्का महसूस हुआ। निधि ने सामने पड़ते ही पहला प्रश्न किया “तो माँ क्या सोचा है तुमने?”

आरती मुस्कुराई “तुम्हें क्या लगता है?”

“बोलो ना माँ।“ निधि जल्दी में थी।

“कब है शादी।  स्वाति को कहना वह 12-1 बजे तक पीछे वाले दरवाजे पर आ जाए।“

“मां!” निधि ने उसे गले लगा लिया” थैंक यू माँ।  शादी कल है।“

निधि माँ के इस नए रूप को थोड़ा अचरज से देख रही थी।

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