भाई-बहन के अटूट स्नेह का प्रतीक सामा-चकेवा पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष सप्तमी से पूर्णिमा तक चलेगा। इसके लिए बहने सामा-चकेवा की जमकर खरीदारी कर रही हैं। सप्तमी को शाम होते ही सामा-चकेवा के गीत सुनाई देने लगेंगे। चकवा भईया चललन अहेरिया, खिरलिच बहिनी देहलीन आशिष…, सामा खेले चललिन…, चकवा भईया के इहे बाड़ी फुलवरिया… आदि लोकगीत छठ के पारण के दिन से गूंजने लगेंगे। बहनें अपनी भाई की दीर्घायु व सुख-समृद्धि के लिए सामा को भाभी व चकेवा को भाई मानकर सामा-चकेवा खेलेंगी। मिट्टी के सामा-चकेवा के साथ मिट्टी के बर्तन, खिरलिच बहन, वृंदावन व चुंगला भी बनाये जा रहे हैं। सिक्की के वृंदावन में दीये से आग लगाकर वृंदावन वन में आग लागल… गीत गाएंगी। बाजार में 100-150 रु सेट सामा-चकेवा बिक रहा है। पं. सुनील झा बताते हैं कि चूल्हा-चौका के बाद खासकर गांव की लड़कियां रात में चौराहे पर जुटकर सामा-चकेवा के गीत गाती हैं। बहनें लालटेन के प्रकाश में गाती दिखती हैं। मनोरम दृश्य होता है। इसमें एक ओर भाई-बहन के स्नेह की अटूट डोर है। वहीं दूसरी तरफ ननद-भौजाई की हंसी-ठिठोली भी कम नहीं। पूर्णिमा के दिन प्रतिमा का विर्सजन किया जाएगा।

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