🔷 राजा बलि असुर कुल में उत्पन्न हुए थे पर वे बड़े सदाचारी थे और अपनी धर्म परायपता के कारण उन्होंने बहुत वैभव और यश कमाया था। उनका पद इन्द्र के समान हो गया। पर धीरे-धीरे जब धन सें उत्पन्न होने वाले अहंकार, आलस्य, दुराचार जैसे दुर्गुण उनमे बढ़ने लगे तो उनके भीतर की शक्ति खोखली होने लगी।

🔶 एक दिन इन्द्र की बलि से भेंट हुई तो सबने देखा कि बलि के शरीर से एक प्रचण्ड तेज निकलकर इन्द्र के शरीर में चला गया है और बलि श्री विहीन हो गये।

🔷 उस तेज से पूछा गया कि आप कौन हैं? और क्यों बलि के शरीर से निकलकर इन्द्र की देह में गये? तो तेज ने उत्तर दिया कि मैं सदाचरण है। मैं जहां भी रहता हूँ वहीं सब विभूतियाँ रहती हैं। बलि ने तब तक मुझे धारण किया जब तक उसका वैभव बढ़ता रहा था। जब इसने मेरी उपेक्षा कर दी तो मैं सौभाग्य को साथ लेकर, सदाचरण में तत्पर इन्द्र के यहाँ चला आया हूँ।

🔶 बलि का सौभाग्य सूर्य अस्त हो गया और इन्द्र का चमकने लगा, उसमें सदाचरण रूपी तेज की समाप्ति ही प्रधान कारण थी।

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