✍जब भी दिन में सोता हूँ..🌞
 मैं बहुत कुछ खोता हूँ।।

नींद में ख़ुद पे इठलाता
एक से दूसरे मुंडेर पर घुमता,
यही सोचता रहता हूँ
आख़िर दिन में मैं क्यों सोता हूँ !

मैं उनके भीषण चीत्कार से
व्यथित होता रहता हूँ।
अनुभूति होती है उनके दिलों की
जो क्षति ख़ुद की सह
दूसरों के हित जीते हैं,
शायद उनके लिए शीतल छाँव वाले
वृक्ष स्वप्नलोक में बोता हूँ..
✍जब भी दिन में सोता हूँ….🌞

मुझे नही पता क्यों
डर के साये में रहता हूँ,
क्या परीक्षा से घबराता
उसी के दुस्वप्नों में कहीं जीता हूँ !
✍जब भी दिन में सोता हूँ…🌞

मैं तुमसे
बहुत दूर नही रहता..
झाँक कर देख
तुम्हारे अंदर ही तो जीता हूँ..
झकझोरता है मुझे हरेक प्रश्न
जो हल नहीं होता है।
बहुत बुरी हालत है मेरी
तकलीफ़ में जीता हूँ..
✍जब भी दिन में सोता हूँ…..🌞

रचनाकार परिचय 🎀

ईमेल- Udhavkrishna1997@gmail.com

जन्म स्थान– मधुबनी बिहार
शिक्षाएम.ए पत्रकारिता एवं जनसंचार
कर्म-क्षेत्र छात्र
राष्ट्रीयता India (भारत)
प्रकाशित कृतियाँतुम खुद पुलिस बन जाओ, पर्यावरण, रामनौमी में तलवारबाजी क्यों।
लेखन ✍✍
सम्प्रति ⚠
रुचियाँ – समाज सेवा, कविता/लेख लेखन
सम्मान दैनिक भास्कर अहा जिंदगी द्वारा सम्मानित
साहित्य सृजन आत्ममनन एवं भाव को व्यक्त करने का माध्यम
कृतियों की सूची
1: छात्र का दुःस्वप्न जून २०१८ बाल साहित्य (अनहद कृति)
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Udhav has completed his Bachelor's and Master's degree in Journalism and Mass Communication from Nalanda Open University in Patna. He writes about all social issues and as he says in his own words, "HE IS A JOURNALIST BY EDUCATION"