The importance of the ritual of Pind Daan at Gaya
The importance of the ritual of Pind Daan at Gaya

गया में पिंडदान से मिलता पितरों को मोक्ष, भगवान राम ने भी किया था यज्ञ

हिंदू धर्म में पितरों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए गया में पिंडदान का खास महत्व है। हर साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से अमावस्या तक पितृपक्ष के दौरान यहां पितरों के लिए श्राद्ध किया जाता है। इस साल यहां छह सितंबर से 20 सितंबर तक पितृपक्ष मेला का आयोजन किया जा रहा है।

यहां पिंडदान करने से मरने वाले व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है। गया में श्राद्ध की महिमा को स्वयं भगवान श्रीराम ने भी माना था। मान्‍यता है कि श्रीराम अौर माता सीता ने भी राजा दशरथ की आत्‍मा की शांति के लिए यहां पिंडदान किया था।

सनातन काल से श्राद्ध की परंपरा चली आ रही है। इसका उल्लेख वेदों पुराणों से मिलता है। ऋषियों मुनियों ने श्राद्ध के महत्व को माना है। शास्त्रों के अनुसार हर मनुष्य पर तीन प्रकार के ऋण होते हैं, देव ऋण, गुरु ऋण तथा पितृ ऋण (माता-पिता)। इनमें श्राद्ध के माध्यम से ही पितृ ऋण से मुक्ति मिलती है।

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श्राद्ध से पितरों को शांति ही नहीं मिलती है बल्कि श्राद्ध करने वाला भी फल का भागी हो जाता है। पितरों का श्राद्ध वैसे हर माह में किया जाता है। जिस तिथि को व्यक्ति की मृत्यु होती है उस तिथि को पिंडदान किया जाता है लेकिन आश्विन कृष्ण पक्ष को ‘पितृ पक्ष’ के रूप में मनाया जाता है।

पितृ पक्ष में लोग गया जाकर अपने पितरों का तर्पण करते हैं। ऐसी मान्यता है कि बिहार के गया में पिंडदान करने से पूर्वजों की आत्माएं भटकना बंद कर देती हैं। गया के फल्गु नदी के तट पर विष्णु पद मंदिर में पिंड दान किया जाता है। श्राद्ध करने वाले लोग गया जाकर मुंडन कराने के बाद पिंड दान करके पितरों का तर्पण करते हैं।

The ritual of Pind Daan at Phalgu River, Gaya | The Bihar News
The ritual of Pind Daan at Phalgu River, Gaya | The Bihar News

गया के बारे में कहा जाता है कि यह नगर ‘गया सुर’ राक्षस के शरीर पर स्थित है। ऐसी कथा प्रचलित है कि गया सुर देवी-देवताओं पर अत्याचार करता था। उसके अत्याचार से देवता बहुत दुखी रहते थे। फिर विष्णु ने उसके जीवन को ही मांग लिया।

गया सुर तैयार हो गया लेकिन उसने शर्त रखी कि प्रतिदिन उसके शरीर पर एक व्यक्ति के सिर के बाल एवं पिंड का दान किया जाना चाहिए। भगवान विष्णु ने उसकी शर्त मान ली और गया सुर जमीन पर लेट गया। उसके बाद विष्णु ने उसके सीने पर पैर रखा जिससे वह मर गया। बताया जाता है कि विष्णु के पैर के निशान विष्णु मंदिर में आज भी मौजूद हैं।

गया के बारे में एक अन्य कथा भी प्रचलित है। कहते हैं गया नामक असुर एक समय शिव की पूजा के लिए क्षीर सागर से कमल लाकर वह उस पर शयन करने लगा। उसकी इस हरकत से अप्रसन्न होकर भगवान विष्णु ने उसे गदा से मार डाला था। तभी से भगवान विष्णु गदाधर के रूप में गया में स्थित हैं।

भगवान विष्णु ने कहा कि जो मनुष्य यहां भक्ति, श्राद्ध, यज्ञ, पिंड दान, स्नान करेगा वह स्वर्ग में जाएगा। इसके बाद ब्रह्मा ने भी गया में यज्ञ किया था। यज्ञ के बाद ब्रह्मा ने कहा जिन लोगों का श्राद्ध गया में होगा वे ब्रह्म लोक के वासी होंगे। कहते हैं गया में पितरों का पिंड दान करने से मनुष्य जिस फल का भागी होता है, उसका वर्णन करना मुश्किल है। गया में पिंड दान करने से व्यक्ति पितृ ऋण से मुक्त हो जाता है।

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