Ishq Ki Fariyaad | The Bihar News
Ishq Ki Fariyaad | The Bihar News

इश्क की फ़रियाद

 

आज अचानक इश्क से मिली मैं

थोड़े गरम थोड़े नरम मिज़ाज़ थे उनके

उत्सुकता मन से उनका हाल-ए-दिल जो पूछा

चेहरे से मायूसी आँखों से बेचैनी छलक पड़ी |

 

मैं एक टक उसे देखती रह गई

खुद को थोड़ा संभाल कर उसने कहा

मेरा अस्तित्व कही खो सा गया है

मेरी रूह थोड़ी बेचैन हैं

धूमिल सी हो गई हैं मेरी चाहतें

ख्वाहिशों के सेज के फूल भी मुरझा से गए हैं |

 

उसकी बातों ने मेरी उत्सुकता को और हवा दे दी

आग्रह कर मैं बोली थोड़ा विस्तार से समझा दो मुझे

क्यूं हैं तेरी हालत ऐसी

क्या हैं तेरी चाहतें और क्या हैं तेरी ख्वाहिशें |

 

मेरी ओर मुख कर वो बोली

बड़ी आसान सी भोली सी ख़ूबसूरत सा था मेरा अस्तित्व

आँखों से शुरु खतों तक का सफ़र भी रूमानी सा था

वक़्त बेवक्त भी आ जाती थी मैं

उसमे भी बेशुमार वक़्त की हक़दार बन जाती

धीरे – धीरे मेरा रंग निखरता

थोडा इंतज़ार थोड़ी तड़प थी मुझमे

रूठने मनाने का सफ़र भी निराला था |

 

एक कसक थी मुझे पाने की सब मे

पा कर इबादत करने की ठानी थी सबने

कसमे वादे भी अटूट थे

हर मौसम के साथ मेरे भी कई रंग थे

किसी को आधी अधूरी मिलती

तो किसी को पूरी मिल जाती |

 

हर तरफ मुझे आदर मिलता

हर रूह में मैं बस्ती थी

हर तरफ मैं छाई थी

कभी छिपी रहती कभी सरेआम चहकती

मेरी नुमाइशी भी बड़ी इज्ज़त से होती थी |

 

आखिरी सांस तक मैं दिल में बस्ती थी

ये जान कर ख़ुदा भी हर दिल को महफूज रखता

न उसे कोई जला सकता न मिटा सकता

ये सब पाकर इठला कर हर ओर मैं उडती

आजाद थी मैं लाख बंदिशों में |

 

समय के साथ आधुनिकता की ऐसी लहर सी चली

मेरा वजूद ही हिल गया

वक़्त की तंगी में जल्दबाजी  का पलड़ा भाड़ी हो गया |

 

अब एक पल को लोग मुझे अपनाते अगले ही पल अलविदा कह देते

अनेक संसाधनों के बाज़ार में मेरी अहमियत बस इतनी सी थी

ना मिलने की तड़प थी ना बिछड़ने का गम

ऐशों आराम से शुरु तंगी पे ख़त्म |

 

तन मिल जाते मन अछूता रह जाता

फ़लक से चाँद तारे तोड़ने की बातें ना होती

हर किसी में चाँद पे पहुँचने की होड़ जो लगी थी

मतलब और मतलबियों की दुनिया में

मेरा स्थान मौन सा हो गया हैं |

 

ये नहीं की आज मैं किसी की चाहत नहीं

हैं आज भी कुछ एक आशिक मेरे

पर आज मेरी इबादत नहीं होती

मैं बस एक जरूरत  बन गई हूँ |

 

जिसे पूरी मिलती उसे मेरी अहमियत नहीं

जिसे मिलती आधी अधूरी

मेरी बर्बादी उसकी ज़िद्द बन जाती

इज्ज़त की अब न रही हक़दार मैं

नफरत से ताजपोशी जो हुई हैं मेरी |

 

सुना था जिस रूह में इश्क हैं

उसमे ख़ुदा रहता हैं

आज मुझे यूँ लोगो ने निकाल फेका हैं

की अब न मेरी अहमियत हैं

ना उस ख़ुदा की |

 

बस अब और ज़िल्लत नहीं सहूंगी

अपने हर ज़ख्म का हिसाब मांगूंगी

भगवान भी डरता हैं अब जिस इंसान से

उस इंसान से ये फ़रियाद करुँगी |

 

क्या हैं मेरा गुनाह क्यूं मिली हैं मुझे इतनी सज़ा

सुना हैं इसी धरती पे होते हैं वकील अब

और होती हैं वक़ालत भी

मिलती है सज़ा और मिलते हैं इन्साफ भी

हो भी क्यूं ना अब भक्त भी हैं मनुष्य

और भगवान भी |

 

उसके दर्द का विश्लेषण सुन हुई आहत मैं

उत्तर के जवाब में बैठी थी

और घिर गई कई सवाल से मैं

ये कौन से  युग में ज़ी रही थी

कैसा अजीब संसार हैं ये

आरोप भी हैं यहाँ और आरोपी भी

ज़ख्म भी हैं और ज़ख़्मी भी |

 

नम हुई आँखें मेरी

दिल से निकली बस यही दुआ

इश्क हैं अगर ख़ुदा

तो बख्स दो इसे

ना मिले इसे कोई सज़ा

बस हो इसकी सज़दा |

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