रागिनी ने कहा अब क्या मैं नौकरी करूंगी।  मैंने समझाया नहीं नौकरी नहीं तुम आसपास की झुग्गी झोपड़ी के गरीब बच्चों को पढ़ाओ। उसने मेरी बात मान ली। आज वह 8-10 छोटे बच्चों को शाम में पढ़ाती। सभी बच्चे उसे मां कहते हैं। वह शाम में बच्चों में व्यस्त रहती है सुबह अपने पौधों में। अब उसे बिल्कुल भी अकेलापन नहीं महसूस होता और उसे अपना जीवन सार्थक महसूस होता  है।”

“ तब तो भाई साहब भाभी की समस्या का समाधान हो गया। “

“हां हो तो गया पर अब मुझे एक समस्या हो गयी । “

“ आपकी कौन सी समस्या?”

“ मेरी समस्या यह है कि अब रागनी के पास मेरे लिए ही समय नहीं है। ” कहते हुए अशोक भाई साहब हा हा कर कर हंसने लगे।

वर्मा जी भी मुस्कुरा पड़े और सोचने लगे की काश हर कोई अपने जीवन के साँझ बेला में मिले  समय का ऐसे ही सदुपयोग करे तो कभी किसी को अकेलापन महसूस ही न हो।  

धन्यवाद !!

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