‘अरे! तुमने भी  वही समझा जो रागिनी ने समझा फिर मैंने उसे समझाया कि धरती को मां क्यों कहते हैं इसलिए क्योंकि उसके गर्भ से नए-नए पेड़ पौधे पैदा होते हैं। तुम उन बच्चो के सामान पौधों को पालने वाली मां बन जाओ। तुम मिटटी में बीज डालो ,पौधों लगाओ  उन्हें प्यार से सींचो जैसे अपने बच्चो को पाला। जब तुम उन बीजों को अंकुरित होते देखोगी फूलों को खिलते देखोगी फलों को निकलते देखोगे तो तुम बिल्कुल वैसा  ही महसूस करोगी जैसे तुमने अपने बच्चों को बड़े होते देखा चलते देखा तो महसूस किया था। पहले तो रागनी  मेरी बात नहीं मानी फिर बार बार बोलने पर उस ने मान लिया। धीरे धीरे उसका मन बागवानी में रमने लगा। आज देखो पूरा गार्डन उसी के मेह्नत का नतीजा है।

इतने सारे फूल हैं छोटे-छोटे फल वाले पौधे हैं। वह रोज सुबह 2 से 3 घंटे बागवानी में बिजी रहती है। जानते हो जब तुम अपनी मिट्टी से जुड़ोगे तो वह तुम्हारे लिए एक तरह से उपचार जैसा काम करती है। आज वो इतने पौधों की माँ की तरह देखभाल करती है और खुश रहती है। फिर एक दिन मैंने उससे कहा देखो तुम पढ़ी लिखी हो तुम्हारे माता-पिता ने तुम्हें पढ़ाया  लिखाया है तुम आज चाहो तो उनके दिए ज्ञान का इस्तेमाल कर सकती हो।

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