ख़त

देखो आज फिर वो खत आया है
जाने ना, आज क्या पैगाम लाया है
तड़प रही थी आंखें मेरी
देखने को जिनको ,
छूने को उनके हर एहसास ।
ना जाने पर कैसा रिश्ता , रखता है
उनको हमसे दूर और खुद के पास

लिखते हैं कि जंग छिड़ी है
घर वापस आऊंगा, ये खों दो आश
प्यार बहुत मैं करता तुमसे
पर मेरी हर सांस पर है ,
धरती मां का वास ।
जानता हूं यह शब्द
व्याकुल करते होंगे तुझे इस वक्त

खूनो की होली खेल,
जब अपनी मिट्टी का गुलाल लगा घर आऊंगा
कह देता हूं ऐ प्रियतमा
तुम रोना मत
बस देना साहस से साथ मेरा

बहना को कहना राखी
आखरी बार बाँध ले भैया को आज
तुम भी रोना मत
मेरे एहसासों से कर लेना एक आखरी सिंगार
आंखों को नम मत करना
मेरा रास्ता माध्यम मत करना
मन भर अपनी आंखों से
कर लेना प्रियतमा मेरा दीदार
तुम्हारी ही नजरों से
कर लूंगा सब से बातें दो

मां के आंसू जो बहे
मैं रूठ जाऊंगा तुमसे, सचमुच तब
कहना मां को वीर उनका
जीत आया है रन को आज
दुश्मनों की गोली हां भले ही
कर देगी सीने को छलनी और तार-तार
पर धरती मां की मोहब्बत
और तुम लोगों के प्रेम का अहसास
धड़के उस पल भी
बनकर मृत शरीर पर जीत का सरताज

जो खत् ये, उन्होंने भेजा है
क्या ही जबाब दूं उनका आज
फूट-फूट कर रोउगी,
या मनाऊंगी उनके जीत का नाज ।
कैसे खो दूं एक पल में ही,
अपने जीवन का सुहाग ।
क्या हि रह जाएगा खुदा ,
इस विधवा के जीवन में उल्लास ।
पर ये सोच में जश्न मनाऊंगी,
मेरा सुहाग ना रहा
भूमि की सजदे में आज ।
कि उनको खोकर भी पाया मैंने ,
एक साहसी वीर प्रताप ।
मेरा वो हिम्मत वाला हमसफर ,
जो झंडे लहरा कर
फूलों से सजे
देश की झंडे में ही आया है ।
जीत आया है देखो ना ,
देखो ना वो रन को आज ।

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