चारो ओर अफ़रा_तफ़री का माहौल था।।
बाहर से जितना शान्त और भव्य दिख रहा था
अंदर से उतना ही बेचैन ,बौखलाहट से भरा हुआ।।
किसी के चेहरे पर मुस्कान थी तो किसी के माथे की सिलवटे मिटने को तैयार ही नही हो रही थी।।
मैं बीच बरामदे पर खड़ा खड़ा माहौल का आंकलन कर रहा था, की किस व्यक्ति से सहायता ली जाए,
मैं किसी निश्कर्ष तक पहुँच पाता , उसके पहले ही
एक छोटी गाड़ी जैसी कोई चीज़ पूरी तेज़ी से मेरी तरफ आ रही थी और उस गाड़ी के ऊपर एक महिला सोई हुई थी,
साथ में कुछ लोग भी थे , दो की पोशाक एक जैसी थी
और बाकी के लोग अपनी पसन्द के लिबाज़ में थे।।
मेरे बगल से गाड़ी गुज़री, पोशाक वाले लोगो ने तो कुछ नही कहा मगर साथ वाले एक व्यक्ति ने मुझे ऐसे देखा मानो मैंने कोई संगीन अपराध कर दिया हो ।।
मैं सहम गया और उस व्यक्ति से ऐसे नज़रे चुराई जैसे मैंने कबूल लिया कि हाँ मैं अपराधी हू।।
मैंने रास्ता बदल लिया और दाहिने से जाने वाले रास्ते को अपना साथी बना लिया
आगे बढ़ने के साथ ही मुझे एक व्यक्ति दिखा जो काफ़ी खुश नजर आ रहा था , मैं उसके पास गया और मैं उनसे पूछ पड़ा,
भाई साहब इस पूरे ईमारत में आप ही पहले इंसान मुझे मिले जो की इतना खुश और उत्साहित दिख रहा हैं।।
मेरे इतना पूछने भर से ही उनकी खुशी फ़ीकी हो गई और बड़े कड़वाहट के साथ उन्होंने मुझे बताया कि उन्हें यहाँ से रिटायरमेंट मिल चुका हैं इसलिये वे इतने खुश हैं ।।

मैंने पूछा आप काम क्या करते हैं??

उन्होंने मेरी तरफ बड़ी हीन भावना से नज़रे घुमाई।।
“शायद इशलिये क्युकी उनकी पोशाक चीख़ चीख़ कर उनके काम का विवरण दे रही थी”
मेरा सवाल जायज़ इसलिये था
क्युकी मैं पोशाकों पर विश्वास नही करता ,
वज़ह शायद यह हैं कि मैं रंगमंच का कलाकार हु।
या ये की मैं इंसान का मूल्यांकन उनके वेश भूसा के आधार पर करना उचित नही समझता ।।
मैं उस पोशाक के आधार पर उनको कोई नाम देता उससे पहले ही वो छोटी गाड़ी पर सवार महिला और वो दो लोग जो एक जैसी पोशाक पहने थे वो लोग वापिस मेरी तरह ही आ रहे थे इस बार उनकी रफ़्तार पहले के मुकाबले काफ़ी कम थी , और उनके साथ जो लोग थे वो काफी व्यस्त नज़र आ रहे थे कोई रो रहा था तो कोई किसी को समझा रहा था कोई मोबाइल फ़ोन पर किसी से माफ़ी मांग के रो रहा था तो कोई चुपी साधे मन ही मन में रो रहा था
मुझे भी रोना आ रहा था मगर वो दो लोग जो एक जैसी पोशाक में थे उनलोगों को कोई फ़र्क नही पर रहा था इतने लोगो के रोने से ।।
मैं सोच रहा था कोई इतना कठोर कैसे हो सकता है , मगर उनकी पोशाक ने जवाब दे दिया ।।
मैं बिना पोशाक वाला इंसान रो पड़ता
इससे पहले मेरी छोटी बहन वहाँ आ पहुँची और बोली
भईया इधर चलो दवाइयां इधर मिलती हैं।।

Facebook Comments